दुनिया में सबसे नफरत किया जाने वाला देश बना चीन, भारत 10वें पायदान पर

दुनिया में सबसे नफरत किया जाने वाला देश बना चीन, भारत 10वें पायदान पर .हाल ही में सामने आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने दुनियाभर के देशों के प्रति लोगों की धारणाओं को उजागर किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, चीन को वैश्विक स्तर पर सबसे ज़्यादा नफरत किया जाने वाला देश घोषित किया गया है, जबकि भारत इस सूची में 10वें स्थान पर है।
यह रिपोर्ट “वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू” (World Population Review) के शोध पर आधारित है, जिसे “न्यूज़वीक” (Newsweek) ने एक मैप के रूप में प्रकाशित किया है। आइए जानते हैं क्या हैं इसके पीछे के मुख्य कारण और यह वैश्विक संबंधों पर क्या असर डाल सकता है।
चीन के प्रति बढ़ती नकारात्मक धारणा के कारण
चीन के प्रति बढ़ती नकारात्मकता के पीछे कई जटिल कारण हैं, जिन्होंने दुनिया भर के लोगों के मन में उसके खिलाफ भावनाएं पैदा की हैं:
- सत्तावादी शासन और मानवाधिकारों का उल्लंघन: चीन का सख्त सत्तावादी शासन, बड़े पैमाने पर सेंसरशिप, और विशेष रूप से शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के साथ किया जाने वाला कथित दुर्व्यवहार, वैश्विक मानवाधिकार संगठनों और सरकारों के लिए चिंता का विषय रहा है।
- क्षेत्रीय विस्तारवाद और आक्रामक विदेश नीति: हांगकांग की स्वायत्तता का दमन, ताइवान के साथ बढ़ते तनाव और दक्षिण चीन सागर में उसके आक्रामक क्षेत्रीय दावे, कई पड़ोसी देशों और पश्चिमी शक्तियों के बीच अविश्वास पैदा करते हैं।
- आर्थिक नीतियां और व्यापारिक विवाद: चीन की आर्थिक नीतियां, जिसमें बौद्धिक संपदा की चोरी के आरोप और व्यापारिक असंतुलन शामिल हैं, ने कई देशों में घरेलू उद्योगों को प्रभावित किया है और व्यापार युद्धों को जन्म दिया है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक के रूप में चीन की भूमिका भी वैश्विक चिंता का विषय है, जिससे पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर उसके प्रति नाराजगी बढ़ रही है।
भारत 10वें स्थान पर क्यों?
रिपोर्ट में भारत को 10वें स्थान पर रखे जाने के पीछे के विशिष्ट कारणों का विस्तृत उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन किसी भी देश की वैश्विक छवि उसकी आंतरिक नीतियों, मानवाधिकार रिकॉर्ड, क्षेत्रीय संबंधों और वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका से प्रभावित होती है। कुछ संभावित कारकों में आंतरिक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दे, मानवाधिकारों से संबंधित चिंताएं, और पड़ोसी देशों के साथ कभी-कभार होने वाले तनाव शामिल हो सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस तरह की रैंकिंग विभिन्न सर्वेक्षणों और डेटा के संयोजन पर आधारित होती है, और यह देशों के प्रति बदलती वैश्विक धारणाओं को दर्शाती है।
वैश्विक संबंधों पर असर
यह रिपोर्ट न केवल एक आंकड़े से कहीं ज़्यादा है; यह देशों के बीच बदलते समीकरणों और जनता की भावनाओं का प्रतिबिंब है। चीन के प्रति बढ़ती नकारात्मकता, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, व्यापार, कूटनीति और भू-राजनीतिक गठबंधनों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकती है। वहीं, भारत का इस सूची में होना, भले ही 10वें स्थान पर हो, उसे अपनी वैश्विक छवि को सुधारने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह रिपोर्ट हमें याद दिलाती है कि किसी भी देश की सॉफ्ट पावर और वैश्विक स्वीकार्यता उसके आंतरिक शासन और अंतरराष्ट्रीय व्यवहार से गहराई से जुड़ी होती है।